क़व्वाली ग्यारहवीं शरीफ़ और हज़रत ग़ौस पाक के चिल्लों पर
रोचक तथ्य
کتاب ’’قوالی امیر خسرو سے شکیلا بانو تک‘‘ سے ماخوذ۔
ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती के चिल्लों पर क़व्वाली के रिवाज और उसकी मक़्बूलियत के बाद हिन्दोस्तान में हज़रत ग़ौस-ए-पाक के चिल्लों पर भी क़व्वाली होने लगी। हालाँकि आप समा’अ और क़व्वाली जैसी चीज़ों को अपने लिए सख़्त ना-पसंद फ़रमाते थे। आज तक बग़दाद में आपके मज़ार पर क़व्वाली की सख़्त मुमान’अत है।
जब हज़रत ग़ौस-ए-पाक के हिन्दुस्तानी मो’तक़िदीन ने यहाँ आपके चिल्लों पर क़व्वाली का सिलसिला शुरू कर दिया तो ये सिलसिला उन घरों में भी पहुँच गया जहाँ आपकी नियाज़ या'नी ग्यारहवीं की फ़ातिहा-ख़्वानी होती थी। हिन्दोस्तान के बेशतर शहरों में आपकी नियाज़ और क़व्वाली एक दूसरे के लिए लाज़िम-ओ-मल्ज़ूम हो गए हैं। इन महफ़िलों में कसरत से आपकी करामात, ख़ुसूसियात और औसाफ़ सुनाए जाते हैं।
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