क़व्वाली की पहली महफ़िल
रोचक तथ्य
کتاب ’’قوالی امیر خسرو سے شکیلا بانو تک‘‘ سے ماخوذ۔
हज़रत अमीर ख़ुसरौ ने जब क़व्वाली की तर्ज़-ए-ईजाद की तो सबसे पहले उसे हज़रत निज़ामूद्दीन औलिया के दरबार में पेश किया। यहीं उस की इब्तिदा हुई। आपके दरबार से पहले जहाँ कहीं इस क़िस्म की महफ़िलों का ज़िक्र मिलता है वो ''समा’अ' की महफ़िलें थीं, क़व्वाली की नहीं । हज़रत निज़ामूद्दीन औलिया की तक़्लीद में दीगर सूफ़िया-ए-चिश्त ने भी क़व्वाली को अपनी महफ़िलों में शामिल कर लिया। सूफ़िया की दिल-चस्पी के पेश-ए-नज़र क़व्वाली में तसव्वुफ़ी कलाम ने जगह पाई। सूफ़िया की ये दिल-चस्पी ख़ुद अमीर ख़ुसरो की मस्लहत-ए-यकजहती से मुताबक़त रखती थी। चुनांचे इसी दिल-चस्पी और इसी मस्लिहत के ज़ेर-ए-असर मुख़्तलिफ़ मज़ाहिब के मानने वाले क़व्वाली के मुतीअ’ हुए, जिससे क़ौमी यक-जहती के जज़्बात को फ़रोग़ मिला।
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