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क़व्वाली में तराना के बोल

अकमल हैदराबादी

क़व्वाली में तराना के बोल

अकमल हैदराबादी

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    रोचक तथ्य

    کتاب ’’قوالی امیر خسرو سے شکیلا بانو تک‘‘ سے ماخوذ۔

    अमीर ख़ुसरो की क़व्वाली में तराना के बोल शामिल हैं, आपने क़व्वाली में सबसे पहले जो क़ौल पेश किया वो सरवर-ए-काइनात सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हसब-ए-ज़ैल क़ौल बताया जाता है।

    ‘’मन कुन्तु मौलाहु फ़-अलिय्यु मौलाह'

    तर्जुमा: मैं जिसका मौला हूँ ‘अली भी उस के मौला हैं

    ये क़ौल हज़रत अली मुर्तज़ा की फ़ज़ीलत के लिए सबसे अहम क़रार दिया जाता है इस नस्री क़ौल में चूँकि मौसीक़ी के औज़ान पूरे नहीं होते, इसलिए अमीर ख़ुसरो ने तराना के बोलों की आमेज़िश की जो हसब-ए-ज़ैल है।

    दर-ए-दिल, दर-ए-दिल, वरदानी

    दर तूम, ताना नाना, ताना ना ना रे

    तानाना, तानाना नारे, तानाना ना रे

    दर तूम, तानाना नाना, तानाना ना रे

    यल्ला ली यल्ला ली यल्ला अल्लाह मन कंतु मौला

    तराना के बोल बे माना होते हैं और मेरा ख़याल है कि इस से नग़्मा के दौरान ज़हन को फ़िक्री तसलसुल से वक़्फ़ा मिलता है। फ़िक्री तसलसुल से मुराद यह है कि नग़्मा के दौरान ज़हन अल्फ़ाज़ के माना-ओ-मतलब में उल्झा रहता है लेकिन जब तराना के बोल आते हैं तो उनकी बे मा’ना हैसियत ज़हनी ‘अमल को हल्का कर देती है जैसे हम किसी गीत की महज़ धुन गुनगुनाते हैं तो बड़ी आसानी महसूस करते हैं मगर जब उस के साथ बोल भी अदा करने लगते हैं तो किसी क़दर बार महसूस होता है। लिहाज़ा क़व्वाली में तराना के बोल सामे’ के क़ल्ब-ओ-ज़हन को लम्हा भर के लिए मज़ामीन से मुन्क़ते’ कर देते हैं इस इन्क़िता के साथ ही सामे’ का नफ़्स जाग पड़ता है और मौसीक़ी का लुत्फ़ लेने लगता है अह्ल-ए-समा’अ समा’अ के दौरान नफ़्स की बे-दारी को हराम क़रार देते हैं। अगर क़व्वाली में तराना बे’मानी बोल फ़िक्र को छूट और नफ़्स को राहत देते हैं तो ये क़व्वाली और समा’अ के दरमियान एक बहुत बड़ा बुनियादी फ़र्क़ पैदा कर देते हैं ग़ालिबन क़व्वाली में ये फ़र्क़ ख़ुसरो ने ग़ैर-मुस्लिम शुरका-ए-महफ़िल की दिल-चस्पी की ग़रज़ से रखा होगा, चूँकि ख़ुसरो जैसा माहिर मूसीक़ार तमाम हाज़िरीन के लुत्फ़ का लिहाज़ रखे ऐसा मुम्किन ही नहीं। आइज़ उनकी तक्मील के लिए वो चाहते तो अक़्वाल ही के बा’ज़ अल्फ़ाज़ की तकरार कर सकते थे मगर ऐसा नहीं किया समा’अ में तराना के बोल नहीं थे क़व्वाली में हैं, ऐसे इख़्तिलाफ़ात गिनवाने से हमारा मक़्सद ये साबित करना है कि क़व्वाली एक फ़न है जो समा’अ से मुख़्तलिफ़ है।

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