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Sufinama

तज़्किरा शंकर-ओ-शंभू क़व्वाल

अकमल हैदराबादी

तज़्किरा शंकर-ओ-शंभू क़व्वाल

अकमल हैदराबादी

रोचक तथ्य

کتاب ’’قوالی امیر خسروؔ سے شکیلہ بانو تک‘‘ سے ماخوذ۔

क़व्वाली का फ़न किसी मज़हब की मीरास नहीं। हर मज़हब के लोग सिर्फ़ इस फ़न की महफ़िलों में शरीक होते रहे हैं बल्कि इस फ़न को ख़ुद अपनाते भी रहे, क्या मुस्लिम और क्या ग़ैर-मुस्लिम सब ही क़व्वाली के फ़नकारों में शामिल रहे। इसकी ताज़ा मिसाल हैं शंकर-ओ-शंभू बिरादरान।

दर-अस्ल शंकर और शंभू दो भाई हैं जो मिलकर गाते हैं, ना’तिया कलाम उनका ख़ास मौज़ू’ है। शंकर और शंभू की शोहरत उनके ख़ालिस ना’तिया कलाम की वजह से बढ़ी और क़ाइम है। आज तमाम जदीद क़व्वाल उ’मूमन तफ़रीही कलाम गाते हैं और ना’तिया कलाम बरा-ए-नाम पेश करते हैं लेकिन शंकर शंभू बिरादरान हमेशा ना’तिया कलिम पेश करते हैं और तफ़रीही कलाम शाज़-ओ-नादिर ही सुनाते हैं। उन्हें तमाम अंबिया-ओ-औलिया से ख़ास अ’क़ीदत है। वो हमेशा इस वज़्अ-दारी अ’क़ीदत पर अटल रहे। उनके मुक़ाबले भी आ’म तौर पर ना’तिया कलाम पर मब्नी होते हैं जिनमें रदीफ़ काटने और रदीफ़ की तकरार करने के अ’लावा मज़ामीन की मुक़ाबला -बाज़ी होती है। ये दोनों भाई इंतिहाई ख़ुश-अख़्लाक़, मुहज़्ज़ब और ख़ुश-किर्दार हैं। इनमें क़दीम हिन्दोस्तान के रिवायती आदाब और गंगा-जमुनी तहज़ीब की झलकियाँ आज भी मौजूद हैं। ये जोड़ी थियटर और अवामी जलसों की ब-निस्बत ख़ानक़ाह, मजालिस-ए-मशाइख़ीन, ग्रामोफ़ोन, रेडियो और टेलीविज़न पर ज़्यादा मक़बूल है।

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