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नहीं बा'द-ए-फ़ना कोई किसी की यादगारों में

अब्दुल रहीम कुंजपूरी

नहीं बा'द-ए-फ़ना कोई किसी की यादगारों में

अब्दुल रहीम कुंजपूरी

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    नहीं बा'द-ए-फ़ना कोई किसी की यादगारों में

    उसी की बे-कसी रहती है उस के ग़मगुसारों में

    दिमाग़ उन का ग़ुरूर हुस्न से है 'अर्श-ए-'आला पर

    भला कब आके बैठेंगे वो हम से ख़ाक-सारों में

    तिरी तेग़-ए-निगह क्या ढूँढती फिरती है मक़्तल में

    सितमगर क्या धरा है देख ले आफ़त के मारों में

    किया है क़त्ल-ए-जुर्म 'आशिक़ी में आप ने हम को

    हुए हैं आप फिर नाहक़ हमारे सोगवारों में

    मिरे आग़ोश में आना तुम्हें दम भर को आफ़त है

    चमन में क्या नहीं देखा हमेशा गुल को ख़ारों में

    रसाई हो तो क्यूँ कर हो हमारी बज़्म-ए-जानाँ में

    जो दुश्मन हैं हमारे हैं वो उन के दोस्त-दारों में

    जुदाई में किसी की करवटें लेता है तू हर दम

    तुझे भी फ़लक हम जानते हैं बे-क़रारों में

    बचाना फ़लक उन से तू अपने ख़िर्मन-ए-मह को

    बला की आग है उन आह-ओ-नालों के शरारों में

    रहा करता है मेरा तज़्किरा फ़र्हाद-ओ-मजनूँ में

    समझाता तू क्या है मैं भी हूँ उन नाम-दारों में

    समझना 'आशिक़-ओ-मा'शूक़ की बातों का मुश्किल है

    निकलता है ज़बाँ का काम आँखों के इशारों में

    हसीनान-ए-जहाँ में इस तरह पर फ़ौक़ है उस को

    कि आता है नज़र जैसे फ़लक पर चाँद तारों में

    'अदावत मय-कशी की है रग़बत ज़ोहद-ओ-तक़्वा से

    शुमार अपना रिंदों में है परहेज़गारों में

    मिरे क़ातिल ने मक़्तल में जो शमशीर-ए-अदा खींची

    क़ज़ा बोली कि मैं भी हूँ क़दीमी जाँ-बाज़ों में

    उधर दिल लूटता है इस तरफ़ बिजली तड़पती है

    इलाही ख़ैर हो बह्स पड़ी है दो बे-क़रारों में

    शब फ़ुर्क़त में मिरा नाला सदा-ए-सूर था 'रहीम'

    ज़मीं जुम्बिश में आए मुर्दे उठ बैठे मज़ारों में

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