जान-ओ-दिल सब वतन पर लुटा कर गए
क़र्ज़ मिट्टी का वो यूँ चुका कर गए
जज़्बा-ए-'इश्क़ यूँ था वतन के लिए
ख़ाक में ख़ून अपना मिला कर गए
तोड़ दीं सारी ज़ंजीर सब बेड़ियाँ
हम-को आज़ाद भारत दिला कर गए
'बोस' 'आज़ाद' 'बापू' या 'बिस्मिल' सभी
दिल में अहल-ए-वतन के समा कर गए
सूलियों पर चढ़े दुश्मनों का मगर
सारा नाम-ओ-निशाँ वो मिटा कर गए
चल दिए बाँध कर वो कफ़न शान से
हाथ में अपने परचम उठा कर गए
याद रखना है उनको सदा जो सबक़
हम को हुब्बुलवतन का पढ़ा कर गए
हू का आ'लम था जब उनकी अर्थी उठी
जाते-जाते ये सबको रुला कर गए
उनकी अ'ज़्मत पे 'इज़हार' को नाज़ है
अ'ज़मत-ए-हिंद को जो बढ़ा कर गए
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