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हर भीड़ में और सारे इदारों में आदमी

अनस इज़हार

हर भीड़ में और सारे इदारों में आदमी

अनस इज़हार

MORE BYअनस इज़हार

    हर भीड़ में और सारे इदारों में आदमी

    यूँ है हद-ए-निगाह नज़ारों में आदमी

    दिल के तमाम दर्द हैं दिल में छुपे हुए

    मुस्कान झूटी लाया क़तारों में आदमी

    ख़ंजर है आस्तीं में तो बातें लगाव की

    रखता है अपनों को भी ख़सारों में आदमी

    जीता है हर घड़ी वो ’उरूज-ओ-ज़वाल में

    फूलों के संग है कभी ख़ारों में आदमी

    मुद्दत हुई है चाँद पे पहुँचे थे हम कभी

    अब तो दिखाई देंगे सितारों में आदमी

    किसको मैं अपना समझूँ पराया किसे कहूँ

    'इज़हार' सामने तो है हज़ारों में आदमी

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