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Sufinama

हम तिरे 'इश्क़ में अपने को फ़ना करते हैं

अ‍र्श गयावी

हम तिरे 'इश्क़ में अपने को फ़ना करते हैं

अ‍र्श गयावी

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    हम तिरे 'इश्क़ में अपने को फ़ना करते हैं

    ज़िंदगी ही में ग़रज़ फ़िक्र-ए-बक़ा करते हैं

    अब तो मरने की शब-ओ-रोज़ दु'आ करते हैं

    तेरे बीमार यही अपनी दवा करते हैं

    हाथ उठा कर वो मुझे कोस रहा था लेकिन

    देख कर मुझ को ये बोला कि दु'आ करते हैं

    इक ज़रा देखिए मेरे दिल-ए-बीमार की नब्ज़

    सुनते हैं आप मसीहा हैं दवा करते हैं

    उन पर क्या ताबिश-ए-ख़ुर्शीद क़यामत का असर

    जो तिरे साया-ए-रहमत में रहा करते हैं

    बा'द मुद्दत के वो आमादा पय-क़त्ल हुए

    आज हम सज्दा-ए-शुक्राना अदा करते हैं

    रहते हैं शब को हम आग़ोश ये जल्वे से तिरे

    बाग़ में गुल जो दम-ए-सुब्ह हँसा करते हैं

    अपनी ज़ुल्फ़ों के वो फंदों को दिखा कर बोले

    मुर्ग़ इस दाम में बे-दाना फँसा करते हैं

    हम-ज़बाँ अपने रिहा हो चुके सूना है क़फ़स

    देखें कब क़ैद से वो हम को रिहा करते हैं

    क्या मुबारक ये मिरी नज़्अ' का 'आलम है नदीम

    वो भी सर पीट के रो-रो के दु'आ करते हैं

    कोई ईमान लाए तो करें क्या 'अर्श'

    शे'र हम रंग में 'मोमिन' के कहा करते हैं

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