ज़ाद-ए-राह-ए-बक़ा ग़ैर अज़ फ़ना मिलता नहीं
है ख़ुदी जब तक कि इंसान में ख़ुदा मिलता नहीं
जुस्तुजू रहती है दौलत का पता मिलता नहीं
सर फिरा करता है पर ज़िल्ल-ए-हुमा मिलता नहीं
है तजस्सुस शर्त यहाँ मलने को क्या मिलता नहीं
पर कहीं दुनिया में सादिक़ आश्ना मिलता नहीं
चश्म-ए-नै की मुद्दतों गर्दिश तो पाया एक तिल
रिज़्क़ इंसाँ को मुक़द्दर से सिवा मिलता नहीं
अल-मदद मौक़ा' मदद का है ये ऐ बाद-ए-मुराद
डूबती है अपनी कश्ती ना-ख़ुदा मिलता नहीं
गुमरही ख़ुद मंज़िल-ए-मक़्सूद की है रहनुमा
ख़िज़्र मिल जाते हैं जिस को रास्ता मिलता नहीं
शा’इरान-ए-हाल क्या मज़मून-ए-नौ पाएँ 'असीर'
ढूँढते हैं ये तख़ल्लुस भी नया मिलता नहीं
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