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क्या अपनी हक़ीक़त कहूँ मैं कौन हूँ क्या हूँ

औघट शाह वारसी

क्या अपनी हक़ीक़त कहूँ मैं कौन हूँ क्या हूँ

औघट शाह वारसी

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    क्या अपनी हक़ीक़त कहूँ मैं कौन हूँ क्या हूँ

    ज़ाहिर में तो बंदा हूँ मैं बातिन में ख़ुदा हूँ

    वो जान-ए-जहाँ मुझ में है मैं जल्वा हूँ उस का

    ये शान है ख़ुद क़िब्ला-ओ-ख़ुद क़िबला-नुमा हूँ

    मैं कुछ नहीं सब कुछ हूँ क़ादिर हूँ ’आजिज़

    हाकिम भी हूँ महकूम भी और सब से जुदा हूँ

    कि हुस्न-ए-बुताँ होंगे बे-सब्रे 'आशिक़

    गह जानिए बे-दाद हूँ गह अहल-ए-वफ़ा हूँ

    ज़ेबा है तश्बीह तनज़ीह मुझ ही को

    आज़ाद हूँ और क़ैद-ए-त’अय्युन से रिहा हूँ

    ने फ़क़्र का दा'वा है हूँ लाइक़-ए-शाही

    लेकिन मैं दर-ए-हज़रत-ए-वारिस का गदा हूँ

    हैं मा'नी फ़ी अनफ़ुसिकुम जिस पे हुवैदा

    'औघट' वो समझता है कि मैं कौन हूँ क्या हूँ

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