बारहा गुफ़्तम व बार-ए-दिगर मी-गोयम
कि मन-ए-दिल शुद:ईं रह ब-ख़ुद मी-पोयम
मैंने बारहा कहा है और फिर कहता हूँ
कि मैं दिल-ए-गुम-शुदा इस रास्ता पर ख़ुद नहीं दौड़ रहा हूँ
दर पस-ए-आईनः तूती सिफ़तम दाश्त:-अन्द
आँ-चे उस्ताद-ए-अज़ल गुफ़्त बगो मी-गोयम
उन्होंने मुझे आईना के पीछे तोता की तरह रखा है
जो कुछ अज़ल के उस्ताद ने कहा है वही कह रहा हूँ
मन अगर ख़ारम व गर गुल चमन-आराई हस्त
की अज़ाँ दस्त कि मी-परवरदम मी-रोयम
मैं ख़्वाह काँटा हूँ ख़्वाह फूल, कोई चमन-आरा है
कि जिस तरह से मुझे पा सकता है उस तरह मैं आ सकता हूँ
दोस्ताँ ऐ'ब मन-ए-बे-दिल-ए-हैराँ म-कुनेद
गौहरे दारम व साहब-नज़रे मी-जोयम
ऐ दोस्तो मुझे बे-दिल हैरान पर ऐ’ब मत लगाओ
मेरे पास एक जौहर है और मैं किसी साहब-ए-नज़र को ढूंढता हूँ
गरचे बा-दल्क़-ए-मुलम्मा' मय-ए-गुलगूँ ऐ'ब-अस्त
म-कुनम ऐब कज़ आँ रंग-ए-रिया मी-शोयम
अगर्चे रिया की गुदड़ी के साथ गुलाब जैसी शराब ऐ’ब है
मेरे ऊपर ऐ’ब न लगाओ मैं उस से रिया-कारी का रंग धोता हूँ
ख़ंद:-ओ-गिर्य:-ए-उश्शाक़ ज़े-जोए दिगर-अस्त
मी-सरायम ब-शब-ओ-वक़्त-ए-सहर मी-मोयम
आ’शिक़ों का हँसना और रोना दूसरी वजह से है
मैं रात को गाता हूँ और सुब्ह के वक़्त रोता हूँ
'हाफ़िज़ा' गुफ़्त कि ख़ाक-ए-दर-ए-मय-ख़ाना म-पो
गो म-कुन ऐब कि मन मुश्क-ओ-ख़ुतन मी-बोयम
हाफ़िज़ ने मुझ से कहा पैमाना के दरवाज़े की ख़ाक न सूँघ
कह दे ऐ’ब न लगाए मैं ख़ुतन का मुश्क सूँघता हूँ
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