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हम ने तेरे क़द्द-ओ-क़ामत का तमाशा देखा

बहराम जी

हम ने तेरे क़द्द-ओ-क़ामत का तमाशा देखा

बहराम जी

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    हम ने तेरे क़द्द-ओ-क़ामत का तमाशा देखा

    कहीं फ़ित्ना कहीं महशर को भी बरपा देखा

    हर तरफ़ जबकि तिरे नूर का जल्वा देखा

    एक सा मंदिर-ओ-का'बा-ओ-कलीसा देखा

    जिस ने उस नूर-ए-मुनव्वर का कफ़-ए-पा देखा

    फिर उस ने कभी सू-ए-यद-ए-बैज़ा देखा

    जल्वा-ए-यार के होते तरफ़-ए-तूर-ए-निगाह

    वाह-वा हौसला-ए-हज़रत-ए-मूसा देखा

    क़ैदी-ए-ज़ुल्फ़ कभी गाह असीर-ए-गेसू

    हमने इस दिल को इसी तरह का सौदा देखा

    नाज़िर उस रू-ए-मुख़त्तत के रहे हम आ'शिक़

    ज़हिदो तुमने जो क़ुरआन-ए-मुहश्शा देखा

    तुझसे सैराब हुए साक़िया लाखों मय-कश

    ख़ाली अपना ही फ़क़त जाम-ए-तमन्ना देखा

    मुस्लिम-ओ-काफ़िरर-ओ-तरसा पे नहीं कुछ मौक़ूफ़

    हमने हर बज़्म में उस यार का चर्चा देखा

    मर्हबा कौन-ओ-मकाँ दिल में समाए अपने

    क़स्र-ए-दिल में भी अ'जब तरह का नक़्शा देखा

    क्या नज़र हो रुख़-ए-आईना पे उस की जिसने

    सादा-रूयों का रुख़ -ए-सादा मुसफ़्फ़ा देखा

    अश्क मेरे नहीं थमते हैं तो कहता है वो शोख़

    समझे जिस चश्म को चश्मा सो वो दरिया देखा

    दैर-ओ-आतिश-कदा-ओ-का'बा में चक्कर मारे

    हाय हैरत कदा-ए-दह्र में क्या-क्या देखा

    सर्व-ए-गुलशन हो सनोबर हो कि हो फ़ित्ना-ए-हश्र

    सच तो ये है कि ग़ज़ब वो क़द-ए-बाला देखा

    जिस तरफ़ रू-ए-मुनव्वर हो करे तू सज्दा

    तुझको 'बहराम' रुख़-ए-यार का शैदा देखा

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