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बे-ख़बर को मेरे 'आलम की ख़बर हो तो गई

बहज़ाद लखनवी

बे-ख़बर को मेरे 'आलम की ख़बर हो तो गई

बहज़ाद लखनवी

MORE BYबहज़ाद लखनवी

    बे-ख़बर को मेरे 'आलम की ख़बर हो तो गई

    ज़ुल्मत-ए-शाम-ए-अलम ढल के सहर हो तो गई

    सुन रहा हूँ कि वो आते हैं कलेजा थामे

    आह शर्मिंदा-ए-तासीर-ओ-असर हो तो गई

    दिल का ये हाल है जैसे कि उसे होश नहीं

    इस तरफ़ यार की दुज़्दीदा नज़र हो तो गई

    एक तूफ़ाँ है कि उमडा सा चला आता है

    ग़म की तकमील मेरे दीदा-ए-तर हो तो गई

    उस का क्यूँ रंज करें ग़म में कटी 'उम्र अपनी

    दिल ने जिस हाल में चाहा था बसर हो तो गई

    अब तो हसरत है अरमाँ है उम्मीद यास

    हस्ती-ए-क़ल्ब-ए-हज़ीं ज़ेर-ओ-ज़बर हो तो गई

    बे-बुलाए चले आए वो मिरी बालीं पर

    देख 'बहज़ाद' मिरी शाम सहर हो तो गई

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