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कभी अश्क पैहम कभी बे-ख़याली कभी थाम कर दिल को फ़रियाद करना

बह्ज़ाद लखनवी

कभी अश्क पैहम कभी बे-ख़याली कभी थाम कर दिल को फ़रियाद करना

बह्ज़ाद लखनवी

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    कभी अश्क पैहम कभी बे-ख़याली कभी थाम कर दिल को फ़रियाद करना

    कभी लब पे नाले कभी लब पे आहें कभी चुपके-चुपके उन्हें याद करना

    ये राज़ एक रहबर ने हम को बताया यही रम्ज़ राह-ए-तलब का सुझाया

    जो मंज़िल हो उस को मंज़िल समझना जो मंज़िल हो उस को आबाद करना

    किसी का ये 'आलम भी देखा है हम ने हमारे लिए रोज़-ओ-शब बे-क़रारी

    कभी कुछ तफ़क्कुर कभी कुछ तग़य्युर कभी भूल जाना कभी याद करना

    ग़नीमत हुआ ख़ुद से वो मुस्कुराए मोहब्बत ने बढ़ बढ़ के जादू जगाए

    दिल-ए-मुब्तला क्यूँ क़ुर्बान जाए उन्हें गया दिल को बर्बाद करना

    मोहब्बत ने इक तर्ज़ उन को सिखाया मगर एक 'आलम को दो रंग दे कर

    उसे याद करना जिसे भूल जाना उसे भूल जाना जिसे याद करना

    मिरे कुफ़्र पर मेरे ज़ौक़-ए-अलम मिरी ज़िंदगी को दिल-ए-मुब्तला को

    तुम मेहर करना बेदाद करना आबाद करना बर्बाद करना

    सुजूद-ए-मोहब्बत सुजूद-ए-इता'अत सुजूद-ए-'अक़ीदत सुजूद-ए-सदाक़त

    किसी संग-ए-दर पर किसी आस्ताँ पर जो करना तो ये काम 'बहज़ाद' करना

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