Sufinama

दूर से आए हैं हम ऐ साकिनान-ए-कू-ए-दोस्त

अमीर मीनाई

दूर से आए हैं हम ऐ साकिनान-ए-कू-ए-दोस्त

अमीर मीनाई

MORE BYअमीर मीनाई

    दूर से आए हैं हम साकिनान-ए-कू-ए-दोस्त

    दो जगह हम को भी थोड़ी सी मियान-ए-कू-ए-दोस्त

    रहते हैं तस्बीह में तक़्दीस में तहलील में

    क़ुदसियों से कम नहीं हैं साकिनान-ए-कू-ए-दोस्त

    झुक गई गर्दन गरेबाँ की तरफ़ जब वक़्त-ए-फ़िक्र

    नहनो-अक़रब से मिला हम को निशान-ए-कू-ए-दोस्त

    गुलशन-ए-जन्नत की क्या परवा है रिज़वाँ उन्हें

    हैं जो मुश्ताक़-ए-बहिश्त-ए-जावेदान-ए-कू-ए-दोस्त

    हुमा बे-फ़ाएदः तू ने क़दम-रंजः किया

    मुस्तहिक़ इन हड्डियों के हैं सगान-ए-कू-ए-दोस्त

    देखूँ वाइ'ज़ किसे सुनते हैं दिल से सामईन

    वस्फ़ तू फ़िरदौस का कर मैं बयान-ए-कू-ए-दोस्त

    जब खुला तफ़्सीर से मज़मून-ए-जन्नात-ए-नईम

    मैं ये समझा है ये क़ुरआँ में बयान-ए-कू-ए-दोस्त

    मेरी अश्कों से जो दरिया मौज-ज़न है रात-दिन

    मर्दुम-ए-आबी बने हैं रहरवान-ए-कू-ए-दोस्त

    है नया आलम है इस आलम से वो आलम जुदा

    और ही कुछ हैं ज़मीन-ओ-आसमान-ए-कू-ए-दोस्त

    जब क़दम रखा ज़मीं पर आसमाँ पर जा पड़ा

    बारहा हम ने किया है इम्तिहान-ए-कू-ए-दोस्त

    नामः-बर मैं जानता हूँ पर बता सकता नहीं

    दिल में है लब तक नहीं आता निशान-ए-कू-ए-दोस्त

    चाहते हो दाब लो उस को बग़ल में 'अमीर'

    बोस्ताँ 'सादी' की ठहरा बोसतान-ए-कू-ए-दोस्त

    स्रोत :
    • पुस्तक : कलाम-ए-अमीर मीनाई (पृष्ठ 38)
    • रचनाकार : अमीर मीनाई
    • प्रकाशन : मशवरः बुक डिपो, दिल्ली

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