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Sufinama

गर राह-ए-तलब में सादिक़ है शिक्वा भी दिल-ए-नाशाद न कर

महबूब वारसी गयावी

गर राह-ए-तलब में सादिक़ है शिक्वा भी दिल-ए-नाशाद न कर

महबूब वारसी गयावी

MORE BYमहबूब वारसी गयावी

    गर राह-ए-तलब में सादिक़ है शिक्वा भी दिल-ए-नाशाद कर

    हाँ ज़ब्त से ले तू काम ज़रा बेचैन हो फ़रियाद कर

    कोशिश तो बहुत की मैं ने मगर क़िस्मत की थी कुछ अपनी ख़बर

    ले सब्र से काम दिल-ए-मुज़्तर जब दाद नहीं फ़रियाद कर

    अब दिल का है वीरान चमन वो गुल हैं कहाँ कैसा गुलशन

    ठहरा है क़फ़स ही अपना वतन सय्याद मुझे आज़ाद कर

    दम तोड़ रहा है देख ज़रा आ’शिक़ है तिरा कुश्ता है तिरा

    मोहनी सूरत वाले हसीं महबूब को यूँ बर्बाद कर

    स्रोत :
    • पुस्तक : तज़किरा शोरा-ए-वारसिया (पृष्ठ 156)
    • प्रकाशन : फाइन बुकस प्रिंटर्स (1993)
    • संस्करण : First

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