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फ़क़त है रात भर की इस चमन में मेहमाँ शबनम

शफ़क़ इमादपुरी

फ़क़त है रात भर की इस चमन में मेहमाँ शबनम

शफ़क़ इमादपुरी

MORE BYशफ़क़ इमादपुरी

    फ़क़त है रात भर की इस चमन में मेहमाँ शबनम

    सहर होते जहाँ सूरज निकल आया कहाँ शबनम

    ग़म-ओ-शादी में तवाम देख नैरंग-ए-चमन बुलबुल

    इधर गुल-ख़ंदा-ज़न हैं और उधर गिर्या-कुनाँ शबनम

    बुलंद-ओ-पस्त सब में है उसी की रौशनी फैली

    फ़लक पर जल्वा-गर तारे ज़मीं पर दरफ़शाँ शबनम

    सबा तो निगहत-ए-गुल का बताती है पता लेकिन

    बताया ये भी गई बे-बाल-ओ-पर उड़ कर कहाँ शबनम

    गुल ताज़ा हवा है कोई पामाल-ए-ख़िज़ाँ शायद

    ये किस के सोग में हैं यूँ तिरे आँसू रवाँ शबनम

    कहाँ कामिल कहाँ नाक़िस कहाँ दरिया कहाँ क़त्रा

    कहाँ आ'ला कहाँ अदना कहाँ सूरज कहाँ शबनम

    'शफ़क़' अब्र-ए-करम का शामियाना होगा तुर्बत पर

    चढ़ाएगी लहद पर चादर आब-ए-रवाँ शबनम

    स्रोत :
    • पुस्तक : तज़्किरा-ए-शो’रा-ए-उत्तर प्रदेश जिल्द ग्यारहवी (पृष्ठ 173)
    • रचनाकार : इरफ़ान अ’ब्बासी

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