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Sufinama

मोअ'त्तर पा के बू-ए-हुस्न से सारा बदन अपना

हसरत मोहानी

मोअ'त्तर पा के बू-ए-हुस्न से सारा बदन अपना

हसरत मोहानी

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    मोअ'त्तर पा के बू-ए-हुस्न से सारा बदन अपना

    वो सूँघा करते हैं ख़ुद भी अक्सर पैरहन अपना

    रक़ीबों की हमारे बाद अब इतनी भी क्या कसरत

    कभी तुम ग़ौर से देखो तो रंग-ए-अंजुमन अपना

    इरादः आज बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर है उन की महफ़िल का

    मोहब्बत में कोई देखे तो ये दीवानः-पन अपना

    कुछ इस आलम में वो बे-पर्दः निकले सैर-ए-गुलशन को

    कि नसरीं अपनी ख़ुश्बू रंग भोली नस्तरन अपना

    वो रहम आया तुझे मजबूरी-ए-शौक़-ए-शहादत पर

    ख़बर ले हाथ की ख़ंजर सँभाल तेग़-ज़न अपना

    हमें मालूम है सब हाल उस के हुस्न-ए-अबतर का

    बनाओ इतना दिखलाए वो ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन अपना

    सभी कुछ हो गया उन का हमारा क्या रहा 'हसरत'

    दीं अपना दिल अपना जाँ अपनी तन अपना

    स्रोत :
    • पुस्तक : कुल्लियात-ए-हसरत मोहानी (पृष्ठ 326)
    • रचनाकार : हसरत मोहानी
    • प्रकाशन : मक्तबा इशाअत उर्दू, दिल्ली (1959)
    • संस्करण : First

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