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मिले जो तू मिले अपनी रज़ा से

इमरान अहमद ख़ान

मिले जो तू मिले अपनी रज़ा से

इमरान अहमद ख़ान

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    मिले जो तू मिले अपनी रज़ा से

    उलझ पड़ता हूँ मैं अपनी दु'आ से

    तिरे बीमार की वहशत 'अजब है

    ग़रज़ उस को दु'आ से दवा से

    दर-ए-जानाँ छुटा है छुटेगा

    ज़माना जो कहे मेरी बला से

    मोहब्बत ज़ीस्त है 'उक़्दः नहीं है

    ये हल होती नहीं फ़िक्र-ए-रसा से

    जो मर मिटता है तुझ काफ़िर-अदा पर

    कहाँ मरता है वो ज़ालिम क़ज़ा से

    कहाँ मैं और कहाँ तेरी तमन्ना

    ये ने'मत भी मिली तेरी 'अता से

    मिरी ख़ल्वत में आता है वो दिलबर

    हज़ारों इश्वा से लाखों अदा से

    सबा को नाज़ है महशर-ख़िरामी

    मिली है उस को तेरे नक़्श-ए-पा से

    जमाल-ए-यार का रंगीं फ़साना

    बयाँ क्यूँ हो किसी तर्ज़-ए-अदा से

    मिरे सर को मिले इक बुत के सज्दे

    मुझे क्या काम है 'इमरान ख़ुदा से

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