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इंसानियत न जिस में हो वो आदमी नहीं

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

इंसानियत न जिस में हो वो आदमी नहीं

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

MORE BYअहमद अली बर्क़ी आज़मी

    इंसानियत जिस में हो वो आदमी नहीं

    जिस में हुज़ूर क़ल्ब हो बंदगी नहीं

    जिस में जुनून-ए-शौक़ हो आ'शिक़ी नहीं

    दिल का मोआ'मला है कोई दिल-लगी नहीं

    रहता है मेरे दरपय-ए-आज़ार फिर भी वो

    उस से अगरचे मेरी कोई दुश्मनी नहीं

    रातों की नींद दिन का सुकूँ हो गया हराम

    पूछा जो कब मिलोगे तो बोला कभी नहीं

    ख़्वाबीदा हसरतों का हो जिस में इनइ'कास

    है कारगह-ए-शीशागरी शाए'री नहीं

    उस की शराब-ए-नाब से बढ़ कर है चश्म-ए-मस्त

    जिस के बग़ैर लुत्फ़-ए-मय-ओ-मय-कशी नहीं

    नक़्द-ए-सुख़न जो करता है वो हो सुख़न-शनास

    जौहर-शनास हो अगर जौहरी नहीं

    'बर्क़ी' जो ख़ुद-शनास है वो है ख़ुदा-शनास

    गुम-गश्तगी-ए-होश-ओ-ख़िरद बे-ख़ुदी नहीं

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