इस बज़्म को महकाओ पहले की तरह फिर से
इस बज़्म को महकाओ पहले की तरह फिर से
महफ़िल में चले आओ पहले की तरह फिर से
नज़रों से गिरे हो तुम अब तो ये नहीं मुमकिन
नज़रों में समा जाओ पहले की तरह फिर से
ये दिल तो मिरा दिल है तुम टूटा हुआ शीशा
लो जोड़ के बतलाओ पहले की तरह फिर से
मुश्किल से तो सँभले हैं फिर होश न खो बैठें
चिलमन को न सरकाओ पहले की तरह फिर से
तुम फूल तो हो लेकिन डाली से जुदा हो कर
मुमकिन नहीं खिल पाओ पहले की तरह फिर से
ये आज का रहबर है भटका के ही दम लेगा
सालार कोई लाओ पहले की तरह फिर से
ख़ामोश हो बरसों से ‘इज़हार’-ए-मोहब्बत का
नग़्मा तो कोई गाव पहले की तरह से फिर से
- पुस्तक : Sukhanwaran-e-Izzat (पृष्ठ 313)
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