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सामने उस तुर्क के दिल रख दिया सर रख दिया

कौसर ख़ैराबादी

सामने उस तुर्क के दिल रख दिया सर रख दिया

कौसर ख़ैराबादी

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    सामने उस तुर्क के दिल रख दिया सर रख दिया

    पास था मौजूद जो कुछ हम ने ला कर रख दिया

    गर्दनें शौक़-ए-शहादत में झुकी हैं सैंकड़ों

    नीमचः क्यूँ हाथ से तर्क-ए-सितमगर रख दिया

    चाँद सी पेशानी सिंदूर का टीका नहीं

    बाम-ए-का'बः पर चराग़ इस ने जला कर रख दिया

    ख़ामुशी भी है दलील-ए-कामयाबी नामः-बर

    ग़म नहीं गर नामः-ए-शौक़ उस ने पढ़ कर रख दिया

    वस्ल में झगड़ा बखेड़ा रात-भर उन से रहा

    साही का काँटा अदू ने ज़ेर-ए-बिस्तर रख दिया

    जब कहा मुझ सा हसीं दुनिया में अब कोई नहीं

    मुस्कुरा कर हम ने आईनः बराबर रख दिया

    अपने दिल में यार ने दुश्मन को फिर क्यूँ दी जगह

    क्या ग़ज़ब है बुत को फिर का'बः के अंदर रख दिया

    एक पहलू में जिगर है दूसरे पहलू में दिल

    तेग़-ओ-ख़ंजर के लिए हिस्सः बराबर रख दिया

    ग़श जो आया दौलत-ए-पा-बोस-ए-जानाँ मिल गई

    गिरते गिरते मैं ने पा-ए-यार पर सर रख दिया

    नाज़ुक-ए-बेदाद से कब चश्म-पोशी हम ने की

    ख़ून-ए-दिल लख़्त-ए-जिगर जो था मयस्सर रख दिया

    मुझ को 'कौसर' प्यार से इस ने गले लिपटा लिया

    हो के जब बेताब मैं ने पाँव सर पर रख दिया

    स्रोत :
    • पुस्तक : तज़्किरा शो'रा-ए-वारसिया (पृष्ठ 81)
    • प्रकाशन : फ़ाइन बुक्स प्रिंटर्स (1993)
    • संस्करण : 2nd Edition

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