वो पहले ग़म दिया करते हैं फिर मसरूर करते हैं

वो पहले ग़म दिया करते हैं फिर मसरूर करते हैं
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मजज़ूब
MORE BYख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मजज़ूब
वो पहले ग़म दिया करते हैं फिर मसरूर करते हैं
तसल्ली हम तिरी ऐ ख़ातिर-ए-रंजूर करते हैं
नहीं होता नहीं होता किसी 'उन्वान ग़म हल्का
बहुत तदबीर तस्कीन-ए-दिल-ए-रंजूर करते हैं
'अजब सरकार है उन की सितम ही में करम देखा
वही मक़बूल होता है जिसे मक़हूर करते हैं
मज़ा आता है उन को छेड़ने में अपने 'आशिक़ के
कभी मग़्मूम करते हैं कभी मसरूर करते हैं
किसी के नाज़ उठाएँ ये तो हम से हो नहीं सकता
मगर मंज़ूर है वो काम जो मज़दूर करते हैं
अदा से देख लेते हैं मैं जब जाने को कहता हूँ
फिर उस पर कहते हैं हम कब तुम्हें मजबूर करते हैं
वो याद आ आ के तड़पाते हैं बरसों हाय फिर क्या क्या
जो दम भर के लिए आकर कभी मसरूर करते हैं
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