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ज़ेब-ए-ज़मीं नहीं कि तू ज़ीनत-ए-आसमाँ नहीं

ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मजज़ूब

ज़ेब-ए-ज़मीं नहीं कि तू ज़ीनत-ए-आसमाँ नहीं

ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मजज़ूब

MORE BYख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मजज़ूब

    ज़ेब-ए-ज़मीं नहीं कि तू ज़ीनत-ए-आसमाँ नहीं

    आँख अगर नसीब हो जल्वा तिरा कहाँ नहीं

    कहता हूँ लाख दर्द-ए-दिल होता मगर बयाँ नहीं

    ऐसी ज़बाँ ज़बाँ है क्या दिल की जो तर्जुमाँ नहीं

    'इश्क़ की ज़र्ब अल-अमाँ ज़ख़्म नहीं निशाँ नहीं

    हुस्न का बिस्मिल इक जहाँ तीर नहीं कमाँ नहीं

    अहल-ए-नज़र तो सैकड़ों साहिब-ए-दिल नहीं कोई

    हुस्न के क़द्र-दाँ बहुत 'इश्क़ का क़द्र-दाँ नहीं

    अपने मक़ाम-ए-’इश्क़ का हाय कहूँ मैं हाल क्या

    ग़म तो यहाँ हज़ार-हा फ़ुर्सत-ए-यक फ़ुग़ाँ नहीं

    जज़्ब में जब मैं गया पास ही तुझ को पा गया

    फिरता रहा सुलूक में जानें कहाँ कहाँ नहीं

    जज़्ब में क्या बहार है दिल है जल्वा-ज़ार है

    मैं हूँ और इक निगार है होश भी दरमियाँ नहीं

    स्रोत :
    • पुस्तक : Gufta-e-Majzoob (पृष्ठ 109)

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