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ग़नी है दिल दो-आलम से फ़राग़त उस को कहते हैं

मर्दान सफ़ी

ग़नी है दिल दो-आलम से फ़राग़त उस को कहते हैं

मर्दान सफ़ी

MORE BYमर्दान सफ़ी

    ग़नी है दिल दो-आलम से फ़राग़त उस को कहते हैं

    है याद-ए-हक़ फ़क़त दिल में क़नाअत उस को कहते हैं

    मिलाया जज़्बा-ए-दिल ने इस अदना में उस आ'ला को

    जिसे पाना है बस मुश्किल करामत उस को कहते हैं

    बनाया जब कि आदम को किया दम अपना दम उस में

    बताया राज़-ए-दिल सारा ख़िलाफ़त उस को कहते हैं

    मेरे चेहरे पे जब अक्स-ए-रुख़-ए-पुर-नूर पड़ता है

    पता रहता नहीं मेरा सरायत उस को कहते हैं

    विसाल-ए-लम-यज़ल ने कर दिया बे-हिर्स-ओ-बे-हमता

    छुटे ख़ुद से और आलम से फ़राग़त उस को कहते हैं

    तन-ओ-जाँ सब उन्हीं का है निसार उन पर करें क्या हम

    मोहब्बत ने किया यकता विलायत उस को कहते हैं

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