मिरी शाए'री मिरी ज़िंदगी मिरी बज़्म-ए-शेर-ओ-सुख़न में आ
मिरी शाए'री मिरी ज़िंदगी मिरी बज़्म-ए-शेर-ओ-सुख़न में आ
कामता प्रशाद होश
MORE BYकामता प्रशाद होश
मिरी शाए'री मिरी ज़िंदगी मिरी बज़्म-ए-शेर-ओ-सुख़न में आ
मिरी बेकली की बहार बन मिरे उजड़े दिल के चमन में आ
मिरी रात की है तू चाँदनी मिरे दिन की तू ही तो धूप है
मिरे दिल का तू ही है आसरा मिरी साँस की तू थकन में आ
मिरी राह में हैं मुसीबतें मिरी मंज़िलों पे निगाह है
मिरी उलझनों को सँवार दे मिरे ज़ख़्म-ए-दिल की छबन में आ
अभी दलदलों में समाज है अभी ज़ालिमों ही का राज है
मैं तो रंज-ओ-ग़म का शिकार हूँ मिरी हिम्मतों की शिकन में आ
मिरे लब पे आज भी मोहर है मिरा दिल तो अब भी ग़ुलाम है
मिरी ख़ामुशी की ज़बान बन मिरे जोश-ए-दिल की लगन में आ
है अदू-ए-जाँ मिरा आसमाँ ये ज़मीं भी मुझ से ख़िलाफ़ है
मिरी बदलियों को तु चीर दे नया चाँद ले के गगन में आ
जो ग़रीब दिल को बढ़ा सके जो घमंड सर को झुका सके
मिरी आरज़ू-ए-नसीब बन मिरी लेखनी के तू फ़न में आ
मिरे नावकों की हैं निय्यतें मिरी बहर-ए-ग़म में वफ़ात हो
मिरी नाव मौज में थाम ले मिरे साहिलों के फबन में आ
मिरी तुर्बतों में न दम रहा मिरी हसरतों में न जान है
मिरे होश का तु चराग़ बन मिरी रौशनी की किरन में आ
- पुस्तक : तज़्किरा-ए-हिंदू शो’रा-ए-बिहार (पृष्ठ 138)
- रचनाकार : मोहम्मद फ़सीहुद्दीन बल्ख़ी
- प्रकाशन : नेशनल बुक सेंटर डालटेनगंज, पलामू (1961)
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