इलाही ख़ैर करना इ'श्क़ की मंज़िल परेशाँ है
इलाही ख़ैर करना इ'श्क़ की मंज़िल परेशाँ है
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
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इलाही ख़ैर करना इ'श्क़ की मंज़िल परेशाँ है
इधर है इज़्तिराब-ए-दिल उधर क़ातिल परेशाँ है
सुना नाला जो करते मुझ को ग़ैरों से ये फ़रमाया
वही आवाज़ है ये जिस से मेरा दिल परेशाँ है
निगाह-ए-नाज़ ने मक़्तल बना रखा है आ'लम को
कोई दम तोड़ता है और कोई बिस्मिल परेशाँ है
बगूला जब कोई उठा सबा सहरा में चिल्लाई
ग़ुबार-ए-क़ैस थम जा पर्दा-ए-महमिल परेशाँ है
न जाने कब मयस्सर हो विसाल-ए-यार ऐ 'मन्नन'
कि उस के हिज्र में अपना दिल-ए-बिस्मिल परेशाँ है
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