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गोशा-ए-चशम में अशक-ए-दर नायाब लिए

इलियास अलवी शादाब

गोशा-ए-चशम में अशक-ए-दर नायाब लिए

इलियास अलवी शादाब

MORE BYइलियास अलवी शादाब

    गोशा-ए-चशम में अशक-ए-दर नायाब लिए

    साज़-ए-ख़ामोश पे बैठे हैं ये मिज़राब लिए

    है कोई महव-ए-तख़य्युल पए सहन-ए-गुलशन

    मस्त आँखों में जवानी के हसीं ख़्वाब लिए

    है सुबुक-रौ तो हर इक मौज-ए-तबस्सुम लेकिन

    अपने दामन में ये क़तरा भी है सैलाब लिए

    माइल-ए-दा’वत-ए-नज़्ज़ारा हर इक मस्त-ए-ख़िराम

    सुंबुलें ज़ुल्फ़ में सौ हल्क़ा-ए-गर्दाब लिए

    मुज़्दा ज़मज़मा सनजान-ए-सुरूर-ओ-मस्ती

    साग़र-ए-चश्म है फिर आज मय-ए-नाब लिए

    मुद्दतों क़ैस को फिरता रहा सहरा-सहरा

    पा-पियादा तन-ए-तन्हा दिल-ए-बेताब लिए

    फिर तिरी बज़्म में होता है गुल-अफ़शाँ 'शादाब'

    दिल में ज़ख़्मों के शगुफ़्ता गुल-ए-शादाब लिए

    स्रोत :
    • पुस्तक : तज़्किरा-ए-शो’रा-ए-उत्तर प्रदेश जिल्द नवीं (पृष्ठ 164)
    • रचनाकार : इरफ़ान अ’ब्बासी

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