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Sufinama

नूरुन-मिन-नूरिल्लाह से अहद अहमद का रूप दिखावत है

अकबर वारसी मेरठी

नूरुन-मिन-नूरिल्लाह से अहद अहमद का रूप दिखावत है

अकबर वारसी मेरठी

MORE BYअकबर वारसी मेरठी

    नूरुन-मिन-नूरिल्लाह से अहद अहमद का रूप दिखावत है

    कहूँ मीम की चादर ओढ़त है कहूँ आप में आप समावत है

    ऐसी भी क्या है बेताबी क्यूँ अर्श पे आवत-जावत है

    हम जानिब हैं तोरे मन की तू उम्मत को बख़्शावत है

    वल्लैल का लटका ज़ुल्फन में वश्शम्स का मिक़्ना' चितवन में

    मा-ज़ाग़ का सुर्मः नैनन में क्या रूप अनूप दिखावत है

    तुझ सा नहीं कोई जहाँ में धनी तोरी कृपा से मोरी बात बनी

    या-सय्यदना मक्की-मदनी तू रसूल-ए-करीम कहावत है

    बतहा जंगल तैबः बन में ढूँढत हूँ मुल्कन मुल्कन मैं

    जा जा मोरे नैनन में क्यूँ देस-बिदेस फिरावत है

    काँधे पर डाले बर्द-ए-यमन होंटन पर कलमे की सुमिरन

    दिखला के अना-बशरुन की फबन तौहीद का रंग जमावत है

    मुझ सा कोई जग में कूराह नहीं मोरे पापन की कुछ थाह नहीं

    या-रब्बिग़फिर्ली वरहमनी कि तू रब्ब-ए-ग़फ़ूर कहावत है

    सब माता-पिता कुल नारी उस सय्यदना के बलिहारी

    या-रब्ब-ए-हब्ली उम्मत की जो हर को कूक सुनावत है

    एक माह-ए-मुदुन गोरा सा बदन नीची नज़रें कल की ख़बरें

    कमली ओढ़े ज़ुल्फ़ें छोड़े दिल छीनत है मन भावत है

    अवगुन की घटाएँ हैं छाईं किरपा हो 'अकबर' की माईं

    कल-जुग सतजुग के साईं तू कल की लाज रखावत है

    स्रोत :
    • पुस्तक : रियाज़-ए-अकबर: असली दीवान-ए-अकबर (पृष्ठ 94)
    • रचनाकार : मोहम्मद अकबर ख़ाँ वारसी
    • प्रकाशन : मतबा मजीदी, मेरठ

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