हमन असरार-ए-वहदत का नफ़ी इसबात में देखा
हमन असरार-ए-वहदत का नफ़ी इसबात में देखा
सरासर नूर-ए-बे-रंगी ज़ुहूरन ज़ात में देखा
नफ़ी जब तक न हो हरगिज़ न पावे ज़ौक़-ए-असबाती
उसी शतरंज का हम जीतना अब मात में देखा
कोई जो हो रहा आशक अलख बेचूँ मुनज़्ज़ह पर
अरूप-ओ-रूप का उस ने लिक़ा लम्हात में देखा
न होवे बुल-हवस राग़िब प्याले का ब-पिंदारी
कि जाम-ओ-तेग़ हम वल्लाह सजन के हाथ में देखा
किसी मंसूर से पूछा सबब इफ़्शा-ए-मा'नी का
कहा मैं मतलब-ए-वाला अभी इस बात में देखा
ये 'बेदिल' सुन फ़ी-अनफोसेकुम उस मा'शूक़-ए-हमदम से
कि हम-मिस्बाह-ए-अहदियत उसी मिश्कात में देखा
- पुस्तक : बेदिल जो उर्दू कलाम (पृष्ठ 108)
- रचनाकार : फ़क़ीर क़ादिर बख़्श बेदिल
- प्रकाशन : सच्चाई इशाअ'त घर, पाकिस्तान (1997)
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