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सहर-ए-चमन में गुलों की हँसी भी काम आई

मयकश अकबराबादी

सहर-ए-चमन में गुलों की हँसी भी काम आई

मयकश अकबराबादी

MORE BYमयकश अकबराबादी

    सहर-ए-चमन में गुलों की हँसी भी काम आई

    मगर नसीम की आशुफ़्तगी भी काम आई

    महक रहा है तिरा हुस्न-ए-बे-रुख़ी उस में

    हमारे दिल की फ़सुर्दा कली भी काम आई

    वो हुस्न देख लिया तुझ में जो था तुझ में

    मिरी निगाह की ना-आगही भी काम आई

    जुनूँ सही ये मिरा तर्क-ए-आरज़ू लेकिन

    मिरे जुनूँ में तिरी बे-रुख़ी भी काम आई

    रह-ए-ग़लत पे क़दम रख के लौट आया हूँ

    कभी कभी मिरी कम-हिम्मती भी काम आई

    वहाँ मिले वो जहाँ का मुझे गुमाँ भी था

    मिरा जुनून-ए-आवारगी भी काम आई

    मिरी तलब से ज़्यादा मिला मुझे 'मैकश'

    दम-ए-सवाल मिरी ख़ामोशी भी काम आई

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