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पूछते हैं मुझ से वो 'अकबर' तुम्हें ये क्या हुआ

शाह अकबर दानापूरी

पूछते हैं मुझ से वो 'अकबर' तुम्हें ये क्या हुआ

शाह अकबर दानापूरी

MORE BYशाह अकबर दानापूरी

    पूछते हैं मुझ से वो 'अकबर' तुम्हें ये क्या हुआ

    कोई कह दे है ये बिस्मिल आप का मारा हुआ

    आज मेरी हसरतों ने भी किया मुझ को सलाम

    कैसे कैसे दोस्तों से मर के में तन्हा हुआ

    हज़रत-ए-मूसा हैं बे-ख़ुद तूर जल कर ख़ाक है

    बे-नियाज़ी के करिश्मे हैं ये देखो क्या हुआ

    क़त्ल कर के मुझ से फ़रमाया ये है अंजाम-ए-इ'श्क़

    कह दिया मैं ने भी हाँ जो कुछ हुआ अच्छा हुआ

    भेज दे इस का बनाने वाला कोई ख़ुदा

    एक मुद्दत से पड़ा है दिल मिरा टूटा हुआ

    मरते दम मुझ से जुदा होता है मेरा दर्द-ए-दिल

    मुझ को तन्हा छोड़ता है ये मिरा पाला हुआ

    आदमी वो भी था कहते थे जिसे फ़िरऔ'न सब

    वो भी थे इंसान ही जिन का लक़ब मूसा हुआ

    ख़ाक सब की असल है फ़ितरत भी सब की एक है

    ये है क़ुदरत जिस को जैसा कह दिया वैसा हुआ

    फ़ित्रतन थे एक हम दोनों मगर हुक्म-ए-ख़ुदा

    वो तो रश्क-ए-गुल हुए मैं ‘अकबर’-ए-शैदा हुआ

    स्रोत :
    • पुस्तक : जज़्बात-ए-अकबर (पृष्ठ 23)
    • रचनाकार :शाह अकबर दानापूरी
    • प्रकाशन : आगरा अख़बार प्रेस, आगरा (1915)
    • संस्करण : First

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