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क्या बताए कोई उस को कि कहाँ रहता है

शाह अकबर दानापूरी

क्या बताए कोई उस को कि कहाँ रहता है

शाह अकबर दानापूरी

MORE BYशाह अकबर दानापूरी

    क्या बताए कोई उस को कि कहाँ रहता है

    नूर आँखों का है आँखों में निहाँ रहता है

    मेरे ही दिल में है मुझ से ही नहीं मिलता वो

    रूह बन कर रग-ए-जाँ में जो निहाँ रहता है

    सारी दुनिया को तसव्वुर है तिरे आ'रिज़ का

    हर नज़र में यही आईना निहाँ रहता है

    मेरे अश्कों की रवानी रुकी रोके से

    यही दरिया है जो हर वक़्त रवाँ रहता है

    दम फ़रिश्तों का घुटा क्यूँ ज़मीं पर उतरें

    आसमाँ पर मिरी आहों का धुआँ रहता है

    मुझ से क्या पूछते हैं आप पता 'अकबर' का

    मर्द-ए-आवारा है क्या जाने कहाँ रहता है

    स्रोत :
    • पुस्तक : जज़्बात-ए-अकबर (पृष्ठ 140)
    • रचनाकार :शाह अकबर दानापूरी
    • प्रकाशन : आगरा अख़बार प्रेस, आगरा (1915)
    • संस्करण : First

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