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नौ-रतन बाज़ू पे जब वो बाँध मह-ए-पैकर उठा

शाह नसीर

नौ-रतन बाज़ू पे जब वो बाँध मह-ए-पैकर उठा

शाह नसीर

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    नौ-रतन बाज़ू पे जब वो बाँध मह-ए-पैकर उठा

    लैली-ए-शब ने रखा परवीं का फिर झूमर उठा

    देखने को तो आईन: बुत-ए-काफ़िर उठा

    दरमियाँ बहर-ए-ख़ुदा मत सद अस्कंदर उठा

    क़द-ए-मौज़ूँ जब कि दिखलाने मिरा दिलबर उठा

    साहब-ए-तकबीर क़द-क़ामत ही फिर कह कर उठा

    चश्म-ए-नम और ख़ुश्क-लब मैं साथ क्या ले कर उठा

    आज कूचे से तिरे सुलतान-ए-बहर-ओ-बर उठा

    चश्म-ए-मस्त-ए-यार को डरता हूँ दिल देते हुए

    है ये शीश: फेंक दे उस को पत्थर पर उठा

    है नगो-नसारी भी साथ मर्दुम-ए-दुनिया-ए-दूँ

    शक्ल-ए-फ़व्वारः अपने औज पर तू सर उठा

    रात-दिन तेरा तसव्वुर था उन्हें ख़ार-ए-चश्म

    क्या गुनह आँखें मिरी तलवों से क्यूँ मिल कर उठा

    देखिए क्या सर पे हो आसूदगान-ए-ख़ाक के

    आज फिर वो फ़ित्नः-ए-बरपा-कुन-ए-मह्शर उठा

    मेरे होते ग़ैर की जानिब तिरे अबरू हिलें

    दोस्ती बाला-ए-ताक़ अपनी रख दिलबर उठा

    एक शब तू बैठ मेरे हल्का-ए-आग़ोश में

    यार-ए-मह-पैकर क़दम हाले से मत बाहर उठा

    गर यही तेरी नहीं है जान-ए-मन तो हम नहीं

    हाँ भी कर हर्फ़-ए-नहीं लब से सुख़न-परवर उठा

    अपने कुश्ते को जलाया तू ने इक ठोकर से जब

    चर्ख़-ए-चारुम को मसीहा छोड़ ये सुन कर उठा

    आक़िबत होता है रुत्बः मर्द-ए-हक़-गो का बुलंद

    दार पर ही चढ़ के हाँ मंसूर बाला-तर उठा

    हूँ मरीज़-ए-चश्म उस का उस से है तस्कीन-ए-दिल

    बाग़बाँ मत सामने से दस्ता-अबहर उठा

    स्रोत :
    • पुस्तक : कुल्लियात-ए-शाह नसीर संकलन: तनवीर अहमद अलवी (पृष्ठ 354)
    • रचनाकार : शाह नसीर
    • प्रकाशन : मज्लिस-ए-तरक़्क़ी अदब, लाहौर (1971)
    • संस्करण : First

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