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Sufinama

टुक समझ कर तो लगाओ लात हाँ बहर-ए-ख़ुदा

शाह नसीर

टुक समझ कर तो लगाओ लात हाँ बहर-ए-ख़ुदा

शाह नसीर

टुक समझ कर तो लगाओ लात हाँ बहर-ए-ख़ुदा

ये कुनिश्त दिल है देखो बुताँ बहर-ए-ख़ुदा

बाग़ में गिर मर भी जाऊँ इस क़द मौज़ूँ को देख

रखियो ज़ेर-ए-सर्व मुझ को बाग़बाँ बहर-ए-ख़ुदा

एक हम भी हैं तिरे हल्क़ः-ब-गोशों में यहाँ

फिर जाना हम से अबरू-कमाँ बहर-ए-ख़ुदा

रुख़ पे हर सूरत से रखना गुल-रुख़ाँ ख़त का है कुफ़्र

देखो क़ुरआँ पर रखियो बोस्ताँ बहर-ए-ख़ुदा

दो क़दम पर रह गई है मंज़िल-ए-मक़्सूद आह

छोड़ कर तन्हा जाओ हमरहाँ बहर-ए-ख़ुदा

ख़ानः-ए-चश्म उस के सब रहने की ख़ातिर छोड़ दो

दीदः-ए-ओ-दानिस्तः उठियो मर्दुमाँ बहर-ए-खु़दा

नामः-ए-लख़्त-ए-दिल उस बे-दीद तक पहुँचा मिरा

आज फिर क़ासिद-ए-अश्क-ए-रवाँ बहर-ए-खु़दा

अबरू-ओ-मिज़्गाँ से उस के इस क़दर काविश कर

इक ख़दंग-ए-आह से दिल यहाँ बहर-ए-खु़दा

ख़ंजर-ओ-शमशीर तक नौबत पहुँचा जंग की

सुल्ह का मज़कूर ला अब दरमियाँ बहर-ए-खु़दा

कब बिन उस आराम-ए-जाँ के जी को याँ आता है चैन

ले चल बेताबी-ए-दिल फिर वहाँ बहर-ए-खु़दा

बन गया दिल ही निशान: आह पर तू ने की

नावक-ए-मिज़्गाँ से थी ख़ातिर-निशाँ बहर-ए-ख़ुदा

फ़िक्र-ए-ज़ाद-ए-राह है कुछ तुझ को भी हाँ 'नसीर'

उम्र को ग़फ़लत में मत खो राएगाँ बहर-ए-ख़ुदा

स्रोत :
  • पुस्तक : कुल्लियात-ए-शाह नसीर संकलन: तनवीर अहमद अलवी (पृष्ठ 197)
  • रचनाकार : शाह नसीर
  • प्रकाशन : मज्लिस-ए-तरक़्क़ी अदब, लाहौर (1971)
  • संस्करण : First

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