टुक समझ कर तो लगाओ लात हाँ बहर-ए-ख़ुदा
टुक समझ कर तो लगाओ लात हाँ बहर-ए-ख़ुदा
ये कुनिश्त दिल है देखो ऐ बुताँ बहर-ए-ख़ुदा
बाग़ में गिर मर भी जाऊँ इस क़द मौज़ूँ को देख
रखियो ज़ेर-ए-सर्व मुझ को बाग़बाँ बहर-ए-ख़ुदा
एक हम भी हैं तिरे हल्क़ः-ब-गोशों में यहाँ
फिर न जाना हम से ऐ अबरू-कमाँ बहर-ए-ख़ुदा
रुख़ पे हर सूरत से रखना गुल-रुख़ाँ ख़त का है कुफ़्र
देखो क़ुरआँ पर न रखियो बोस्ताँ बहर-ए-ख़ुदा
दो क़दम पर रह गई है मंज़िल-ए-मक़्सूद आह
छोड़ कर तन्हा न जाओ हमरहाँ बहर-ए-ख़ुदा
ख़ानः-ए-चश्म उस के सब रहने की ख़ातिर छोड़ दो
दीदः-ए-ओ-दानिस्तः उठियो मर्दुमाँ बहर-ए-खु़दा
नामः-ए-लख़्त-ए-दिल उस बे-दीद तक पहुँचा मिरा
आज फिर ऐ क़ासिद-ए-अश्क-ए-रवाँ बहर-ए-खु़दा
अबरू-ओ-मिज़्गाँ से उस के इस क़दर काविश न कर
इक ख़दंग-ए-आह से ऐ दिल यहाँ बहर-ए-खु़दा
ख़ंजर-ओ-शमशीर तक नौबत न पहुँचा जंग की
सुल्ह का मज़कूर ला अब दरमियाँ बहर-ए-खु़दा
कब बिन उस आराम-ए-जाँ के जी को याँ आता है चैन
ले चल ऐ बेताबी-ए-दिल फिर वहाँ बहर-ए-खु़दा
बन गया दिल ही निशान: आह पर तू ने न की
नावक-ए-मिज़्गाँ से थी ख़ातिर-निशाँ बहर-ए-ख़ुदा
फ़िक्र-ए-ज़ाद-ए-राह है कुछ तुझ को भी हाँ ऐ 'नसीर'
उम्र को ग़फ़लत में मत खो राएगाँ बहर-ए-ख़ुदा
- पुस्तक : कुल्लियात-ए-शाह नसीर संकलन: तनवीर अहमद अलवी (पृष्ठ 197)
- रचनाकार : शाह नसीर
- प्रकाशन : मज्लिस-ए-तरक़्क़ी अदब, लाहौर (1971)
- संस्करण : First
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