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न आया क्या सबब अब अलग रहा दिल-ए-इंतिज़ार आख़िर

तुराब अली दकनी

न आया क्या सबब अब अलग रहा दिल-ए-इंतिज़ार आख़िर

तुराब अली दकनी

MORE BYतुराब अली दकनी

    आया क्या सबब अब अलग रहा दिल-ए-इंतिज़ार आख़िर

    जहाँ होवे वहाँ जा कर मुझने होना निसार आख़िर

    ब-हाल-ए-ख़स्तः दीवान: मुझे बैठा तो रहने देव

    कभू तो इस गली आवेगा रंगीं-निगार आख़िर

    चला आता है जो सय्याद-ए-ज़ालिम दाम-ए-गेसू ले

    कि शायद आहू-ए-दिल कूँ करेगा शिकार आख़िर

    सरापा ग़र्क़-ए-इस्याँ हूँ गिरफ़्तार-ए-ख़जालत हूँ

    जानो क्या करेगा तूँ मिरा अंजाम-ए-कार आख़िर

    कहीं हस्ती मने हरगिज़ ठिकाना तो नहीं दस्ता

    मगर दस्ता ठिकाना है मुझे दारुल-बवार आख़िर

    सनम जिस वक़्त पूछेगा कि क्या लाया मिरी ख़ातिर

    मुझे होना लगेगा तब निहायत शर्मसार आख़िर

    भला बिल-फ़र्ज़ वल-तक़दीर बे-शक दोज़ख़ी हूँ मैं

    ब-हर-सूरत कलाता हूँ ग़ुलाम-ए-हश्त-ओ-चार आख़िर

    गुनह कुछ होर भी करना तो कर ले आरज़ू मत रख

    नहीं तेरे गुनाहाँ कूँ तो कच्चा हद्द-ओ-शुमार आख़िर

    बदल शाह-ए-नजफ़ का तूँ 'तराबी' नक़्श-ए-पा हो रह

    करेगा तुझ कूँ बख़शाइश शह-ए-दुलदुल-सवार आख़िर

    स्रोत :
    • पुस्तक : दीवान-ए-तुराब (पृष्ठ 219)
    • रचनाकार : शाह तुराब अली दकनी
    • प्रकाशन : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (पाकिस्तान) (1983)
    • संस्करण : First

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