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मैं बैतुल्लाह से 'मसऊ'द' तोहफ़ा ले के आया हूँ

मसऊद लखीमपुरी

मैं बैतुल्लाह से 'मसऊ'द' तोहफ़ा ले के आया हूँ

मसऊद लखीमपुरी

MORE BYमसऊद लखीमपुरी

    मैं बैतुल्लाह से 'मसऊ'द' तोहफ़ा ले के आया हूँ

    ग़िलाफ़-ए-का'बा-ए-अक़दस का टुकड़ा ले के आया हूँ

    ख़ुदा की राह का यसरिब से सौदा ले के आया हूँ

    हक़ीक़त में तरीक़त का ये तमग़ा ले के आया हूँ

    है अब पेश-ए-निगाह-ए-शौक़ हर-दम शान-ए-रहमत की

    बताऊँ क्या कि उस सरकार से क्या ले के आया हूँ

    समाता ही नहीं नज़रों में मेरी तूर का मंज़र

    किसी का दिल के आईने में जल्वा ले के आया हूँ

    शर्फ़ हासिल हुआ दरबार-ए-अहमद में रसाई का

    मैं बीमार-ए-मोहब्बत था मुदावा ले के आया हूँ

    शफ़ाअ’त का भरोसा नक़्द-ए-रहमत हाथ आया है

    मदीना और मक्का से ख़ज़ाना ले के आया हूँ

    जो माँगा हक़ से वो पाया रसूल अल्लाह के दर से

    कहूँ क्या हज़रत-ए-वाइ'ज़ मैं क्या क्या ले के आया हूँ

    गया था सू-ए-काबा साज़-ए-आहंग जुनूँ ले कर

    मदीना से अ'जब पुर-कैफ़ नग़्मा ले के आया हूँ

    निहायत सख़्त थी मसऊद इ'स्याँ की गिराँ-बारी

    मगर हज़रत से बख़्शिश का सहारा ले के आया हूँ

    स्रोत :
    • पुस्तक : तज़्किरा-ए-शो’रा-ए-उत्तर प्रदेश जिल्द दसवीं (पृष्ठ 285)
    • रचनाकार : इरफ़ान अ’ब्बासी

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