ब-हर-लम्हा तफ़्सीर-ए-सोज़-ए-मोहब्बत शरीअ'त नहीं है तो फिर और क्या है
ब-हर-लम्हा तफ़्सीर-ए-सोज़-ए-मोहब्बत शरीअ'त नहीं है तो फिर और क्या है
तुरफ़ा क़ुरैशी
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ब-हर-लम्हा तफ़्सीर-ए-सोज़-ए-मोहब्बत शरीअ'त नहीं है तो फिर और क्या है
तसव्वुर तिरे ताक़-ए-अबरू का शब भर इ'बादत नहीं है तो फिर और क्या है
मोहब्बत की तकज़ीब दुनिया में कैसी मोहब्बत तो है मेहर-ए-तस्दीक़-ए-हस्ती
वो अफ़्साना हम तुम है उ'न्वान जिस का हक़ीक़त नहीं है तो फिर और क्या है
इधर इ'श्क़ को शौक़-ए-नज़्ज़ारा-बाज़ी उधर हुस्न-ए-सर-गर्म आफ़त-तराज़ी
सर-ए-बज़्म यूँ उन का बे-पर्दा आना क़ियामत नहीं है तो फिर और क्या है
अदाओं को उस की किसी ने न समझा सितमगर उसे कह के मुँह सब से फेरा
मगर फिर भी उस ने किसी को न छोड़ा इ'नायत नहीं है तो फिर और क्या है
ये दुनिया ये हर सम्त दिल-कश नज़्ज़ारे कहीं लाला-ओ-गुल कहीं चाँद-तारे
यहाँ से वहाँ तक तजल्ली के धारे ये जन्नत नहीं है तो फिर और क्या है
बना कर हमें अपने जल्वों का मज़हर किया सारी मख़्लूक़ से उस ने बरतर
ये ए'ज़ाज़ ये वक़ार अल्लाहु अकबर मोहब्बत नहीं है तो फिर और क्या है
ये मज़मून ये जिद्दत शेर-ओ-नग़्मा ये इलहाम-ए-सामानी-ए-फ़िक्र 'तुरफ़ा'
तग़ज़्ज़ुल का मे'यार और इतना ऊँचा ये रहमत नहीं है तो फिर और क्या है
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