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कहानी-5- फ़क़ीरी गुलिस्तान-ए-सा’दी

सादी शीराज़ी

कहानी-5- फ़क़ीरी गुलिस्तान-ए-सा’दी

सादी शीराज़ी

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    कुछ फ़क़ीर साथ-साथ सफ़र कर रहे थे। आराम-तकलीफ़ जो भी मिले, आपस में बांट लेते। मैंने चाहा कि मैं भी उनके साथ हो लूँ किन्तु वे इसके लिए राज़ी हुए।

    मैंने कहा, यह भले आदमियों का दस्तूर नहीं है कि अपनी संगति से दूसरों को वंचित रखे। मैं ताक़त और ज़ात में इतनी जल्दी महसूस करता हूँ की लोगों की सोहबत में शातिर दोस्त बन कर रहूंगा अगर मैं चौपाए पर सवार नहीं हूँ तो मैं तुम्हारे लिए ज़ीन-पोश उठाने की कोशिश करूंगा।

    उन लोगों में से एक बोला, हमने तुझसे जो कुछ कहा है उसका बुरा मान। वजह यह है कि इसी सफ़र में एक दिन एक चोर फ़क़ीरों के वेश में गया और वह हम लोगों में घुल-मिल गया। हम लोग क्या जानें कि किस वेश में कौन छुपा हुआ है? यह तो लिखने वाला ही जानता है कि लिफ़ाफ़े के अन्दर (बन्द ख़त) में क्या लिखा है। फ़क़ीर लोग बेचारे सीधे-सादे होते है। हमने उस चोर पर सन्देह भी किया और उसे अपना मित्र बना लिया।

    फ़क़ीर अपनी गुदड़ी से ही पहचाने जाते हैं, चाहे वह गुदड़ी दुनिया को दिखाने के लिए ही क्यों हो।'

    'ऐ इन्सान। तू अपना दिल साफ़ रख और नेक काम में लगा रह। कपड़े चाहे कोई भी पहन। चाहे सिर पर ताज रख और चाहे कंधे पर शाही झंडा।'

    'फ़क़ीरी तो संसार का लोभ और काम वासना छोड़ देने में है, फ़क़ीरी कपड़े पहनने में नहीं।

    'कजागद के पीछे मर्द की बहादुरी भी तो होनी चाहिए। हिजड़े को हथियारों से लाद देने से क्या लाभ?'

    हम लोगों ने एक दिन और एक रात तक सफ़र किया। रात में हम एक क़िले' की दीवार के नीचे सोए हुए थे कि उस चोर ने हमारे एक साथी से लोटा माँगा कि मैं इस्तिन्जा को जा रहा हूँ। उसे लोटा मिल गया तो वह उसके अ'लावा कुछ और सामान भी उठाकर चम्पत हो गया।

    उस मक्कार फ़क़ीर को देखो जिसने ऊपर से गुदड़ी पहन रखी है और का'बे के पवित्र कपड़े से गधे की झूल का काम ले रहा है।

    हमारा साथ छोड़ने के बा'द वह शाही महल में घुसा। उसने वहाँ से भी एक डिबिया चुराई और फिर भागा। दिन निकलने तक वह काफ़ी दूर पहुँच चुका था। हम लोग अभी तक सो ही रहे थे। सुब्ह होने पर बादशाह के सिपाहियों ने हमें पकड़ लिया और गिरफ़्तार करके क़िले' के अन्दर ले गए। वहाँ हमारी ख़ूब पिटाई हुई और हमें क़ैद-ख़ाने में डाल दिया गया। उसी दिन से हमने किसी को अपने साथ लेना छोड़ दिया, क्योंकि सलामती अलग रहने में ही है।

    अगर किसी क़ौम में एक आदमी भी कोई बुरा काम करता है, तो पूरी क़ौम बदनाम हो जाती है, फिर छोटे की इ’ज़्ज़त रहती है और बड़े की।

    क्या तूने यह नहीं देखा है कि चरागाह के अन्दर अगर एक बैल घुस आता है तो वह गाँव की सब गायों को ख़राब कर देता है?

    यह घटना सुनकर मैंने कहा, अल्लाह बड़ा मेहरबान है। उसका लाख लाख शुक्र है कि उसने मुझे फ़क़ीरों के अनुभव से लाभ उठाने का अवसर दिया। फ़क़ीरों! भले ही मुझे तुम्हारे साथ रहने का मौक़ा’ नहीं मिला, लेकिन तुमने जो कहानी सुनाई, उससे तो मुझे लाभ ही हुआ। यह शिक्षा जीवन-भर मेरे काम आएगी।

    मज्लिस में अगर एक बद-तमीज़ आकर बैठ जाए, तो उसमें शरीफ़ लोगों को बहुत तकलीफ़ पहुँचती है। हौज़ को चाहे ऊपर तक गुलाब-जल से भर दिया जाए। परन्तु उसमें एक कुत्ते के गिर जाने से वह गन्दे पानी का चहबच्चा बन आता है।'

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