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एक तोते का गंजे फ़क़ीर को अपनी तरह समझना - दफ़्तर-ए-अव्वल

रूमी

एक तोते का गंजे फ़क़ीर को अपनी तरह समझना - दफ़्तर-ए-अव्वल

रूमी

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    एक पंसारी के पास तरह तरह की बोलियाँ बोलने वाला, ख़ुश-रंग तोता था।वो दुकान की निगहबानी करता और आने जाने वालों से मज़े मज़े की बोलियाँ बोलता था। एक दिन इत्तिफ़ाक़ ये हुआ कि मालिक अपने घर गया हुआ था और दुकान पर तोता निगहबानी कर रहा था इतने में एक बिल्ली चूहे पर दौड़ी।तोता अपनी जान बचाने को जूंही एक तरफ़ भागा तो गड़-बड़ में रोग़न-ए-बादाम की बोतलें लुढ़क गईं। जब मालिक घर से वापस आया तो देखा कि तेल के चकत्तों से तमाम फ़र्श चिकना हो गया है।

    पंसारी ने ख़फ़ा हो कर तोते के सर पर एक ऐसा धप लगाया कि चोट के सदमे से वो गंजा हो गया। कई दिन तक तोते ने बोलना चालना तर्क कर दिया और पंसारी अपनी हरकत पर पशेमान होने लगा। वो अपनी डाढ़ी नोचता और अपने जी में आप कहता कि अफ़्सोस काश कि मेरा हाथ इस बुरी घड़ी से पहले ही टूट जाता जिस घड़ी मैंने उस के सर पर धप लगाया था। इसी पशेमानी में वो हर साहिब-ए-दिल दरवेश के आगे नज़राने पेश करता था कि किसी तरह उस का तोता फिर बोलने लगे।इसी तरह कई दिन गुज़र गए।

    पंसारी हैरान-ओ-परेशान अपनी दुकान पर बैठा था और दिल में ग़म-ओ-ग़ुस्सा खा रहा था कि देखिए मेरा तोता कभी बोलेगा भी या नहीं कि इतने में यक मलंग फ़क़ीर चार अबरू का सफ़ाया किए और औंधे हुए प्याले की तरह सर घुटाए उस तरफ़ से गुज़रा तोते ने फ़ौरन दरवेश पर आवाज़ कसा और कहा कि अबे गंजे!शायद तूने भी तेल की बोतल गिराई है जो तुझे गंजा होना पड़ा? सुनने वाले बे-इख़्तियार हंस दिए कि लो साहिब ये तोता फ़क़ीर को भी अपनी मानिंद समझता है। लिहाज़ा तुम अपने अहवाल पर ख़ुदा के पाक बंदों का अंदाज़ा ना करो। अगरचे लिखने में शेर (एक दरिंदा)और शीर की शक्ल एक है लेकिन मा’नी में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ है।

    अक्सर ऐसा हुआ कि लोगों ने ख़ुदा के नेक और बर्गुज़ीदा बंदों को नहीं पहचाना और गुमराह हो गए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : Hikayat-e-Rumi Hisaa-1
    • रचनाकार :मौलाना रूमी
    • प्रकाशन : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द) (1945)

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