गुल-ओ-चूँ होर निकली
गुल-ओ-चूँ होर निकली
असीं शरअ' दी पीत लगाई अजला गुल होर निकली
जद मुर्शिद रम्ज़ सुझाई तय गुल वचों होर निकली
सूरत इल्मी है मादूम
आलम बिनाँ नहीं मालूम
जदों ग़ैरों जान छुराई
तय गुल वचों होर निकली
जिन्नों मुल्लाँ ग़ैर पुकारे
ओह है महज़ नाबूद प्यारे
जदों ऐन हक़ीक़त पाई
तय गुल वचों होर निकली
बे सूरत विच सूरत लक्या
देख सूरत नों झगड़ा मकिया
जदों यार ने शक्ल दिखाई
तय गुल वचों होर निकली
में की जानाँ इ'श्क़ को यहा
कत्थे रहन्दा याराजेहा
जदों मुरली का हन वजाई
तय गुल वचों हर निकली
सोहना ग़ैब अलग़ीब कहा वे
कहने सुनने विच न आवे
जदों ज़ाहिर हुई लोकाई
तय गुल वचों होर निकली
आलम देवच परघट होया
कसरत देवच कसरत होया
फिर वहदत शान दिखाई
तय गुल वचों होर निकली
हर शए शक्लों जुदा दुस्सह वे
अपना अपना नाम रखावे
जदों समझ हक़ीक़त आई
तय गुल वचों होर निकली
है ओह मुतलक़ पाक इतलाक़ों
पाक मुनज़्ज़ह जुफ्तों ताक़ों
जद बनिया ख़ुद हर जाई
तय गुल वचों होर निकली
लभदी फिर वही रही बदलियाँ
ढूँड न केती अपने देसां
अज लिया पहचान में माही
तय गुल वचों होर निकली
अमानत अली ने यार पुछाता
कसरत देवच वहदत जाता
अज देंदा फिरे दुहाए
तय वचों होरंकली
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