'अजब करम शह-ए-वाला तबार करते हैं
'अजब करम शह-ए-वाला तबार करते हैं
कि ना-उम्मीदों को उम्मीद-वार करते हैं
जो ख़ुश-नसीब यहाँ ख़ाक-ए-दर पे बैठे हैं
जुलूस-ए-मसनद-ए-शाही से 'आर करते हैं
सुना के वस्फ़ रुख़-ए-पाक-ए-'अंदलीब को हम
रहीन-ए-आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार करते हैं
बनाई पुश्त न का'बा की उन के घर की तरफ़
जिन्हें ख़बर है वो ऐसा वक़ार करते हैं
सगान-ए-कू-ए-नबी के नसीब पर क़ुर्बां
पड़े हुए सर-ए-रह इफ़्तिख़ार करते हैं
कुशूद 'उक़्दा-ए-मुश्किल की क्यूँ मैं फ़िक्र करूँ
ये काम तो मिरे तैबा के ख़ार करते हैं
'हसन' की जान हो उस वुस'अत-ए-करम पे निसार
कि इक जहान को उम्मीद-वार करते हैं
- पुस्तक : नात के चन्द शोरा-ए-मोतक़ीदीन (पृष्ठ 115)
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