अच्छे ई'सा हो मरीज़ों का ख़याल अच्छा है
अच्छे ई'सा हो मरीज़ों का ख़याल अच्छा है
हम मरे जाते हैं तुम कहते हो हाल अच्छा है
आरज़ू वस्ल की अच्छी ये ख़याल अच्छा है
हाए पूरा नहीं होता है सवाल अच्छा है
नज़्अ' में मैं हूँ वो कहते हैं कि ख़ैरियत है
फिर बुरा होता है कैसा जो ये हाल अच्छा है
तुझ से माँगूँ मैं तुझी को कि सभी कुछ मिल जाए
सौ सवालों से यही एक सवाल अच्छा है
याद-ए-वस्ल आई तो दिल से ये कहा हसरत ने
उस को सीने से लगा रख ये ख़याल अच्छा है
एक से एक हसीनों में है अच्छा लेकिन
हत्थे चढ़ जाए जो अपनी वही माल अच्छा है
फूल हों कि न हों छाओं घनी हो जिस में
हर मुसाफ़िर की नज़र में वो निहाल अच्छा है
देख ले बुलबुल-ओ-परवाना की बेताबी को
हिज्र अच्छा न हसीनों को विसाल अच्छा है
अच्छी हालत पे किसी की नहीं रोता कोई
आँखें क्यूँ रोती हैं फिर दिल का जो हाल अच्छा है
तुम ज़बाँ से तो बुरा कहते हो मेरे दिल को
चितवनों की तो सुनो कहती हैं माल अच्छा है
रातें अच्छी हैं दिन अच्छे हैं महीने अच्छे
अच्छे मा'शूक़ से सोहबत हो तो साल अच्छा है
दोनों आईने हैं उस में है रक़ीब इस में हबीब
ख़्वाब-ए-मा'शूक़ से आ'शिक़ का ख़याल अच्छा है
चीज़ माँगे की हो अच्छी भी तो किस मसरफ़ की
हो बुरा भी मगर अपना हो तो माल अच्छा है
चौदहवीं साल में है नाम-ए-ख़ुदा दुख़्तर-ए-रज़
पढ़ दे क़ाज़ी कहो दो बोल ये साल अच्छा है
वाइ'ज़ उस की सी अदाएँ तो नहीं हूरों में
हम ने तस्लीम किया हुस्न-ओ-जमाल अच्छा है
आ गया उस का तसव्वुर तो पुकारा ये शौक़
दिल में जम जाये इलाही ये ख़याल अच्छा है
जिस का अंजाम मुसीबत वो ख़ुशी भी है बुरी
जिस का अंजाम ख़ुशी हो वो मलाल अच्छा है
आँखें दिखलाते हो जोबन तो दिखाओ साहिब
वो अलग बाँध के रखा है जो माल अच्छा है
वो उधर अ'क्स इधर बीच में है आईना
बह्स ये छिड़ गई है किस का जमाल अच्छा है
दहन-ए-ज़ख़्म में हर क़तरा-ए-ख़ूँ है याक़ूत
तेरी तलवार के बेड़े का उगाल अच्छा है
माह-ए-कामिल मह-ए-नौ दोनों हसीं हैं लेकिन
इक ज़रा सुन जो है कम इस से हिलाल अच्छा है
हाए बूटा सा वो क़दहाए वो रुख़ वो जोबन
फूल फल जिस के हों अच्छे वो निहाल अच्छा है
हसरतें ख़ून के दरिया ही में तड़पें तो भली
मछलियों के लिए मौजों ही का जाल अच्छा है
शोख़ियाँ वस्ल में करती हैं जो दिल को मायूस
शर्म देती है तसल्ली कि मआल अच्छा है
बर्क़ अगर गर्मी-ए-रफ़्तार में अच्छी है 'अमीर'
गर्मी-ए-हुस्न में वो बर्क़-जमाल अच्छा है
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