हर जगह हम को हवा-ए-जल्वा-ए-जानाना है
बाग़ में बुलबुल दिल अपना बज़्म में परवाना है
सैर में है रूह वक़्त-ए-ख़्वाब दिल सीने में क़ैद
शम्अ' उड़ती फिरती है फ़ानूस में परवाना है
बादा-ए-ऐ’श जहाँ को इस में क्यूँ कर हो क़रार
दिल मिरे सीने में इक टूटा हुआ पैमाना है
जो मकाँ है वो घरौंदे की तरह मिट जाएगा
मुन’इमो शौक़-ए-’इमारत-बाज़ी तिफ़्लाना है
हुस्न के तालिब नहीं रखते तमीज़-ए-कुफ़्र-ओ-दीं
एक परवाने को शम्अ' का'बा-ओ-बुत-ख़ाना है
हर तरफ़ से सू-ए-का'बा है रुख़ क़िबला-नुमा
आश्ना-ए-हक़ हमेशा ख़ल्क़ से बेगाना है
जिस हसीं का ध्यान आया दिल का मालिक हो गया
बे-तकल्लुफ़ मेहमाँ उस घर में साहब-ए-ख़ाना है
है जुनूँ में भी ज़'ईफ़ों की हमें दा'वत पसंद
मोरचों का रिज़्क़ है ज़ंजीर का जो दाना है
तर्क-ए-दुनिया है जिसे कहते हैं आज़ादी 'असीर'
जो गिरफ़्तार-ए-’अलाएक़ है यहाँ दीवाना है
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