अब देख के जी घबराता है सावन की सुहानी रातों को
अब देख के जी घबराता है सावन की सुहानी रातों को
पिया छोड़ गए दिल तोड़ गए अब आग लगे बरसातों को
ऐ जान-ए-मोहब्बत जान-ए-ग़ज़ल आओ तो तुम्हारी नज़्र करें
आँखों में सजाए बैठे हैं हम प्यार भरी सौग़ातों को
यूँ प्यार की क़स्में खा खा कर क्यूँ झूटी तसल्ली देते हो
बस रहने दो हम जान गए सरकार तुम्हारी बातों को
मसला हुआ आँचल शानों पर ये ज़ुल्फ़ की लट उलझी उलझी
आँखों की ख़ुमारी कहती है रहते हो कहीं तुम रातों को
ज़ुल्फ़ों को हवा में लहराना हँस हँस के तुम्हारा बल खाना
अंदाज़ हैं सब दिल लेने के हम जान गए इन बातों को
बे-दर्द हसीनों की ख़ातिर क्यूँ होते हो बदनाम 'फ़ना'
सफ़्फ़ाक सितम-गर क्या समझें हम दिल-वालों की बातों को
- पुस्तक : Kulliyat-e-Fana Bulandshahri
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