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तुम सा कोई हमदम कोई दम-साज़ नहीं है

ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मजज़ूब

तुम सा कोई हमदम कोई दम-साज़ नहीं है

ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मजज़ूब

MORE BYख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मजज़ूब

    तुम सा कोई हमदम कोई दम-साज़ नहीं है

    हर वक़्त हैं बातें मगर आवाज़ नहीं है

    ये नग़्मा-ए-दिल-कश मिरा बे-साज़ नहीं है

    वो बोल रहे हैं मिरी आवाज़ नहीं है

    जाँ-बाज़ है 'मज्ज़ूब' सुख़न-साज़ नहीं है

    वो बोल रहे हैं मिरी आवाज़ नहीं है

    हम ख़ाक-नशीनों को मसनद पे बिठाओ

    ये 'इश्क़ की तौहीन है ए'ज़ाज़ नहीं है

    हम तुम ही बस आगाह हैं इस रब्त-ए-ख़फ़ी से

    मा'लूम किसी और को ये राज़ नहीं है

    'मज्ज़ूब' हूँ पीता ही चला जाता हूँ पैहम

    परवाना है बुलबुल का सा अंदाज़ नहीं है

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