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मद्दाह हूँ जनाब-ए-रिसालत पनाह का

ग़ुलाम इमाम शहीद

मद्दाह हूँ जनाब-ए-रिसालत पनाह का

ग़ुलाम इमाम शहीद

MORE BYग़ुलाम इमाम शहीद

    मद्दाह हूँ जनाब-ए-रिसालत पनाह का

    'अर्श-ए-बरीं पे गोशा है मेरी कुलाह का

    महफ़िल में मेरी नग़्मा-सराई से शोर है

    हर सम्त आह आह का और वाह वाह का

    ज़ेबा है फ़ख़्र-ओ-नाज़ मुझे जिस क़दर करूँ

    देखूँ तो मद्ह-ख़्वाँ हूँ मैं किस बादशाह का

    दरिया-ए-फ़ैज़-ओ-जूद है वो जिसके सामने

    तिनके से कम है कोह भी गर हो गुनाह का

    उस जाया 'उज़्र-ख़्वाही हमारी करेगा वो

    जिस जा पे ज़हरा-आब हो हर 'उज़्र-ख़्वाह का

    पैग़म्बरों को फ़ख़्र हुआ उस की ज़ात से

    सरदार ही से बढ़ता है रुत्बा सिपाह का

    सरसब्ज़ क्या हों उस रुख़-ए-ज़ेबा के रू-ब-रू

    मुँह क्या है शमा'-ए-बज़्म का या मेहर-ओ-माह का

    शबनम की क्या मजाल जो गुल-गश्त कर सके

    जिस गुलिस्ताँ में पाँव ठहरे निगाह का

    आशिक़ के दिल से आह निकलती है इसलिए

    उस के सिवा मक़ाम नहीं दिल में आह का

    कालक तो मेरे मुँह की छटे अब किसी तरह

    होवे गुज़र मदीने में मुझ रू-सियाह का

    दर-पेश है 'अदम का सफ़र सब को दोस्तो

    जो ना'त का कलाम है तोशा है राह का

    पैग़म्बरों का शाहिद-ए-'आदिल है वो 'शहीद'

    क्या मर्तबा है नाम-ए-ख़ुदा उस गवाह का

    स्रोत :
    • पुस्तक : नात के चन्द शोरा-ए-मोतक़ीदीन (पृष्ठ 31)

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