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नहीं हूँ कुछ भी मगर क्या कहूँ कि क्या हूँ मैं

मुख़्तार बदायूँनी

नहीं हूँ कुछ भी मगर क्या कहूँ कि क्या हूँ मैं

मुख़्तार बदायूँनी

MORE BYमुख़्तार बदायूँनी

    नहीं हूँ कुछ भी मगर क्या कहूँ कि क्या हूँ मैं

    फ़ज़ा-ए-क़ुद्स की गूँजी हुई सदा हूँ मैं

    जो के दिल से निकले वो मुद्द'आ हूँ मैं

    टपकती यास हो जिस से वो इल्तिजा हूँ मैं

    हर एक रँग में पाता हूँ कुछ झलक तेरी

    ज़रा जो ग़ौर की नज़रों से देखता हूँ मैं

    तजल्लियों से तिरी जगमगा उठे ज़र्रे

    तुझे ख़बर है कि कब से तड़प रहा हूँ मैं

    जुनून-ए-शौक़ में कुछ ऐसी मेरी हालत है

    कि अपनी बातों पे ख़ुद वज्द कर रहा हूँ मैं

    इरादा एक भी पूरा हो सका अफ़्सोस

    वो दर्दमंद-ए-अलम ख़ूगर-ए-वफ़ा हूँ मैं

    खुला ये मेरी हक़ीक़त का मुद्द'आ 'मुख़्तार'

    अजल नसीब हों परवर्दा-ए-फ़ना हूँ मैं

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