निगाह-ए-लुत्फ़ के उमीद-वार हम भी हैं
निगाह-ए-लुत्फ़ के उमीद-वार हम भी हैं
लिए हुए ये दिल-ए-बे-क़रार हम भी हैं
हमारे दस्त-ए-तमन्ना की लाज भी रखना
तिरे फ़क़ीरों में ऐ शहर-ए-यार हम भी हैं
इधर कभी तो सुन अक़दस के दो क़दम जल्वे
तुम्हारी राह में मुश्त-ए-ग़ुबार हम भी हैं
जो सर पे रखने को मिल जाए ना'ल-ए-पाक-ए-रसूल
तो फिर कहेंगे कि हाँ ताजदार हम भी हैं
ये किस शहंशह-ए-वाला का सदक़ा बटता है
कि ख़ुसरुओं में पड़ी है पुकार हम भी हैं
तुम्हारी एक निगाह-ए-करम में सब कुछ है
पड़े हुए तो सर-ए-रहगुज़ार हम भी हैं
'हसन' है जिनकी सख़ावत की धूम 'आलम में
उन्हीं के तुम भी हो इक रेज़ा-ख़्वार हम भी हैं
- पुस्तक : नात के चन्द शोरा-ए-मोतक़ीदीन (पृष्ठ 115)
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