परवर्दा-ए-तूफ़ाँ होकर हम तूफ़ान से किनारा क्या करते
परवर्दा-ए-तूफ़ाँ होकर हम तूफ़ान से किनारा क्या करते
साहिल की तमन्ना क्यूँ करते कश्ती का सहारा क्या करते
माइल ब-करम हैं वो पैहम हम उस को गवारा क्या करते
आसूद-ए-आफ़त दुनिया में ’इशरत का सहारा क्या करते
छूटे हैं क़फ़स से हम उस से पर्दाज़ की ताक़त ही न रही
गुलशन में पहुँचना मुश्किल है गुलशन का नज़ारा क्या करते
जलता हुआ गुलशन देखते ही मुँह फेर लिया हम ने अपना
फूलों को तड़प कर जलने को बतलाओ गवारा क्या करते
गुलचीं के सितम से ऐ 'फ़ख़री' आगाह करें कैसे गुल को
नज़रों से इशारा मुश्किल है हाथों से इशारा क्या करते
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